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Showing posts from August, 2020

मेवाड़ महाराणा करण सिंह /mevan maharana karan singh

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  मेवाड़ महाराणा करण सिंह /mevan maharana karan singh मेवाड़ महाराणा करण सिंह 1620 से 1628 तक मेवाड़ के शासक रहे  जहांगीर ने करण सिंह को 5000 मनसब दी तथा यह मुगलों से मनसब प्राप्त करने वाला पहला मेवाड़ का सिसोदिया शासक था करण सिंह ने उदयपुर में कर्ण विलास व दिलकुश महल का निर्माण करवाया    दिलकुश महाल  करण सिंह एकमात्र मेवाड़ का शासक था जिसने मुगलों की अधीनता स्वीकार की तथा करण सिंह के पिता अमर सिंह के शासनकाल में ही करण सिंह के कारण 5 फरवरी 1615 को प्रसिद्ध मेवाड़ मुगल संधि हुई जिसमें मेवाड़ के  शासकों ने मुगलों की अधीनता  को स्वीकार किया करण सिंह ने पिछोला झील (उदयपुर) में जग मंदिर महलों का निर्माण कार्य प्रारंभ किया लेकिन इसको पूरा इसके पुत्र जगत सिंह प्रथम ने किया                     पिछोला झील में जग मंदिर शाहजहां   (खुर्रम) ने अपने पिता के प्रति विद्रोह करने के कारण खुर्रम को जगमंदिर महलों में करण सिंह ने शरण दी थी         मेवाड़ के सिसोदिया वंश  का राजवंश                                                   1• राणा हमीर                         1326 _ 1364  2• राणा क्षेम सिंह     

महाराणा अमर सिंह /maharana amar singh

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महाराणा अमर सिंह महाराणा अमर सिंह 19 जनवरी 1597 को मेवाड़ की राज गद्दी पर बैठे उनका राज्याभिषेक चावंड में हुआ था महाराणा अमर सिंह महाराणा प्रताप के पुत्र थे महाराणा अमर सिंह जहांगीर ने अमर सिंह को अधीन करने के लिए मेवाड़ पर निम्न अभियान भेजें 1  1605                  परवेज 2  1608                   महावत ख़ां 3  1609                  अब्दुल्ला खा 4  1611                  राजा बसु  जहांगीर ने अमर सिंह को अधीन करने के लिए 1613 से 1616 के मध्य अजमेर के मैगजीन फोर्ट में आकर रुका था जहां पर जेम्स प्रथम का राजदूत सर टॉमस रो ने 10 जनवरी 1616 को अजमेर के मैगजीन फोर्ट में आकर जहांगीर से मुलाकात करता है और भारत में व्यापार करने की अनुमति प्राप्त करता है जहांगीर के प्रतिनिधि के रूप में खुर्रम (शाहजहां) और अमर सिंह के मध्य 5 फरवरी 1615 को ऐतिहासिक मुगल मेवाड़ संधि हुई   जिसमें  अमर सिंह ने जहांगीर की अधिकता स्वीकार की  इस प्रकार अमर सिंह मुगलों की अधीनता स्वीकार करने वाला मेवाड़ का पहला शासक था  अमर सिंह एकमात्र सिसोदिया वंश का पहला राजा था जिसने मुगलों की अधीनता को स्वीकार किया  अमर सिंह ने इस सं

महाराणा प्रताप के बारे में /magarana pratap ke bare me

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  महाराणा प्रताप के बारे में/maharana pratap ke bare me  महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 को कुंभलगढ़ कटारगढ़ में हुआ था महाराणा प्रताप के पिता                     महाराणा उदय सिंह  महाराणा प्रताप की माता          जेवंता बाई या जीवन्त  कवर  महाराणा प्रताप के पत्नी         1 धीर                          2 अजवादे या अजबदे  (अमरसिंह की माँ) महाराणा प्रताप के बचपन का नाम           कीका   महाराणा प्रताप का साहित्यिक नाम        पाथल (चट्टान) महाराणा प्रताप के हाथी का नाम 1 रामप्रसाद  2 लूणा  महाराणा प्रताप के घोड़े का नाम   चेतक (काठियावाड़ी नस्ल)                                        महाराणा प्रताप का चित्र महाराणा प्रताप के उपनाम 1  कीका  2 पाथल   3 नीला घोड़ा रा असवाह  महाराणा प्रताप के घोड़े की समाधि    बालेचा( उदयपुर) महाराणा प्रताप की छतरी      पांडोली (उदयपुर) (8 खंभों की)  महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक  1 गोगूण्डा  2 कुम्भलगढ़  महाराणा प्रताप मेवाड़ के महाराणा उदय सिंह के जेष्ठ पुत्र थे तथा उनकी माता का नाम  जयवंता बाई था  तथा उदय सिंह की  एक अन्य रानी धीरकवर  अपने पुत्र जगमाल को मे

राणा उदय सिंह द्वितीय के के बारे में

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 राणा उदय सिंह द्वितीय के बारे में राणा उदय सिंह 1537 में मेवाड़ की राजगद्दी पर बैठे  कर्नल जेम्स टॉड के अनुसार   राज्याभिषेक के समय   उदय सिंह की आयु 15 वर्ष थी इनका राज्याभिषेक कुंभलगढ़ में हुआ था 1540 में मावली (उदयपुर) के युद्ध में राणा उदय सिंह ने बनवीर को पराजित करके चित्तौड़ पर अधिकार किया दिल्ली के शासक शेरशाह सूरी से डरकर राणा उदय सिंह ने चित्तौड़ किले की चाबियां शेरशाह सूरी के पास भिजवाई थी इस कारण शेरशाह सूरी का अधिकार चित्तौड़गढ़ पर हो गया और इसने यहां का प्रतिनिधि कबास खा को बनाया राणा उदय सिंह ने 1559 में अपने पुत्र अमर सिंह के जन्म पर  उदयपुर नगर की स्थापना की  तथा वहां उदयसागर झील का निर्माण करवाया उदयसागर झील उदयसागर झील का निर्माण 1559 में  प्रारंभ किया था जो 1565 में बन कर पूर्ण हुई थी राणा उदयसिंह द्वितीय अकबर ने उदय सिंह के शासनकाल में 13 अक्टूबर 1567  में चित्तौड़ पर आक्रमण किया परंतु उदय सिंह अकबर के आक्रमण के पूर्व ही चित्तौड़ की रक्षा का भार अपने सेनापति जयमल मेड़तिया और पत्ता सिसोदिया को सौंप कर गिरवा की पहाड़ियों में चला गया उदय सिंह को ढूंढने के लिए अकबर ने

राणा विक्रमादित्य का इतिहास / Rana Vikramadity ke bare me jankary

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  राणा विक्रमादित्य का इतिहास /Rana Vakramadity ka itihas विक्रमादित्य मेवाड़ की गद्दी पर 1531 से 1536 तक रहा राणा विक्रमादित्य कर्मावती व राणा सांगा का पुत्र था  राणा विक्रमादित्य से पूर्व मेवाड़ का राजा रतन सिंह था जो  1528 से 1531 तक शासक रहा है  रतन सिंह के शासनकाल में कर्मावती ने अपने पति के हत्यारे बाबर से अपने बड़े पुत्र विक्रमादित्य को राजा बनाने के लिए एक पत्र लिखा की अगर वह विक्रमादित्य को चित्तौड़ का शासक बनाने में उसकी मदद करेगा तो रणथंबोर का किला उसे उपहार स्वरूप दिया जाएगा लेकिन 26 दिसंबर 1530  को बाबर की मृत्यु हो गई रतन सिंह और बूंदी के शासक सूरजमल हाड़ा के मध्य में अहेरिया उत्सव का आयोजन हुआ जिसमें दोनों आपस में लड़ते हुए मारे गए फिर 1531 को  राणा विक्रमादित्य मेवाड़ का शासक बना विक्रमादित्य के शासन काल में 1534 में गुजरात के   बहादुर शाह ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया था  इस कारण कर्मावती ने विक्रमादित्य और उदय सिंह को उनके ननिहाल बूंदी भेज कर राणा विक्रमादित्य का चित्र  चित्तौड़ सेना का नेतृत्व बाघ सिंह को सौंप दिया तथा बाग सिंह लड़ता हुआ मारा गया और इसी समय  1534 में कर

बप्पा रावल के बारे में / Bappa Rawal ke bare me

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बप्पा रावल के बारे में / Bappa Rawal ke bare me बप्पा रावल को मेवाड़ के गोहिल वंश का वास्तविक संस्थापक कहा जाता है  डॉ हीराचंद ओझा के अनुसार बप्पा रावल किसी व्यक्ति विशेष का नाम ना होकर कॉलभोज नामक शासक की उपाधि थी बप्पा रावल के पिता      ___    नागादित्य  बप्पा रावल की माता     _ _     कमलावती 734 ईसवी मैं बप्पा रावल ने मौर्य वंश के शासक मानमोरी को पराजित करके मेवाड़ का वास्तविक संस्थापक कहलाया                       बप्पा रावल का चित्र                                    गोहिल वंश ने मेवाड़ पर 1300 वर्ष तक शासन किया इसलिए मेवाड़ का गोहिल वंश एक ही देश पर लगातार सबसे अधिक शासन करने वाला दुनिया का एकमात्र राजवंश है कुंभलगढ़ प्रशस्ति में बप्पा रावल को विप्र नाम से जाना जाता है बप्पा रावल ने हिंदुओं सूरज की उपाधि धारण की थी इसलिए मेवाड़ के सभी शासकों को हिंदूआ  सूरज के नाम से जाना जाता है बप्पा रावल का वास्तविक नाम कालभोज बताता है जबकि  बप्पा उसकी एक उपाधि थी बप्पा रावल ने कैलाशपुर मानसरोवर (उदयपुर) में एकलिंग शिव मंदिर का निर्माण करवाया यह मेवाड़ में बुद्ध देवता माने जाते थे मेवाड़ के शास

महाराणा सांगा का इतिहास

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महाराणा सांगा का इतिहास या संग्राम सिंह का   इतिहास__(1509 -1528)  महाराणा सांगा अपने पिता रायमल की मृत्यु के बाद 1509 ईस्वी में 27 वर्ष की आयु में मेवाड़ का शासक बना| मेवाड़ के महाराणाओ में वह सबसे प्रतापी शासक था इतिहासकार हरविलास शारदा ने महाराणा सांगा को हिंदू पथ कहा है..  महाराणा सांगा के बारे में कहा जाता है कि जब राणा सांगा की मृत्यु हुई थी उस समय इनके शरीर पर  80 घाव  थे इस कारण कर्नल जेम्स टॉड ने राणा सांगा को सैनिक  भग्नावशेष और सैनिकों का खण्डर कहां है उत्तराधिकार के लिए संघर्ष____    रायमल के जीवन काल में ही सत्ता के लिए पुत्रों के बीच आपसी संघर्ष प्रारंभ हो गया कहा जाता है कि एक बार कुंवर पृथ्वीराज और जयमल व संग्राम सिंह ने अपनी अपनी जन्म पत्रिकाएं एक ज्योतिषी को दिखाई उन्हें देखकर ज्योतिषी ने कहा कि ग्रह तो पृथ्वीराज और जयमल के भी अच्छे हैं परंतु राजयोग महाराणा सांगा या संग्राम सिंह के पक्ष में ही होने के कारण मेवाड़ का स्वामी वही होगा यह सुनते ही दोनों भाई संग्राम सिंह पर टूट पड़े पृथ्वीराज ने हुल मारी जिससे संग्राम सिंह की एक आंख फूट गई  चित्र-- महाराणा सांगा की एक आंख