महाराणा सांगा का इतिहास

महाराणा सांगा का इतिहास या संग्राम सिंह का   इतिहास__(1509 -1528) 

महाराणा सांगा अपने पिता रायमल की मृत्यु के बाद 1509 ईस्वी में 27 वर्ष की आयु में मेवाड़ का शासक बना| मेवाड़ के महाराणाओ में वह सबसे प्रतापी शासक था
इतिहासकार हरविलास शारदा ने महाराणा सांगा को हिंदू पथ कहा है.. 

महाराणा सांगा के बारे में कहा जाता है कि जब राणा सांगा की मृत्यु हुई थी उस समय इनके शरीर पर  80 घाव  थे इस कारण कर्नल जेम्स टॉड ने राणा सांगा को सैनिक  भग्नावशेष और सैनिकों का खण्डर कहां है

उत्तराधिकार के लिए संघर्ष____   रायमल के जीवन काल में ही सत्ता के लिए पुत्रों के बीच आपसी संघर्ष प्रारंभ हो गया कहा जाता है कि एक बार कुंवर पृथ्वीराज और जयमल व संग्राम सिंह ने अपनी अपनी जन्म पत्रिकाएं एक ज्योतिषी को दिखाई उन्हें देखकर ज्योतिषी ने कहा कि ग्रह तो पृथ्वीराज और जयमल के भी अच्छे हैं परंतु राजयोग महाराणा सांगा या संग्राम सिंह के पक्ष में ही होने के कारण मेवाड़ का स्वामी वही होगा यह सुनते ही दोनों भाई संग्राम सिंह पर टूट पड़े पृथ्वीराज ने हुल मारी जिससे संग्राम सिंह की एक आंख फूट गई
 चित्र-- महाराणा सांगा की एक आंख फूटी हुई


इस समय तो सारंग देव( महाराणा रायमल के चाचा) ने बीच-बचाव कर किसी तरह उन्हें शांत किया किंतु  दिनोंदिन कुवरो मैं विरोध का भाव बढ़ता ही गया सारंग देव ने उन्हें समझाया कि ज्योतिषी के कथन पर विश्वास कर तुम आपस में ही संघर्ष कर रहे हो
           इस समय अपने भाइयों के डर से  सांगा श्रीनगर (अजमेर )के करमचंद पवार के पास चला गया और रायमल ने उसे बुलाकर अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया

महाराणा सांगा ने अपने जीवन में अनेक युद्ध किए जोकि निम्न है

1_ खातोली का युद्ध (कोटा) _(1517-1518) 
यह युद्ध कोटा में   खातोली नामक स्थान पर हुआ  जोकि महाराणा सांगा और  सिकंदर लोदी का  उत्तराधिकारी इब्राहिम लोदी के बीच हुआ जिसमें महाराणा सांगा विजय रहा
इस युद्ध में तलवार से सांगा का बाया हाथ कट गया था और 
महाराणा सांगा का एक हाथ कटा हुआ चित्र

घुटने पर तीर लगने से वह हमेशा के लिए लंगड़ा हो गया था खातोली की  पराजय का बदला लेने के लिए 1518 में इब्राहिम लोदी ने मियां माखन के अध्यक्षता में सांगा के विरुद्ध एक बड़ी सेना भेजी किंतु सांगा ने बान्डी( धौलपुर )नामक स्थान पर लड़े  गए  युद्ध में एक बार फिर शाही सेना को पराजित किया
2_ गागरोन का युद्ध (झालावाड़ )__1519_
यह युद्ध झालावाड़ में गागरोन नामक स्थान पर लड़ा गया जिसमें राणा सांगा और मालवा का महमूद खिलजी  के बीच हुआ था जिसमें महाराणा सांगा विजय रहा इस युद्ध में राणा सांगा की ओर से मेदिनीराय भी आया था
3_ बांडी (धौलपुर) का युद्ध __1519_
यह युद्ध महाराणा सांगा और इब्राहिम लोदी के सेनापति मियां माखन और मियां हुसैन के बीच 1519 में बाड़ी धौलपुर में हुआ था जिसमें महाराणा  सांगा विजय रहा 
4_ बयाना (भरतपुर )का युद्ध __1527_
यह युद्ध महाराणा सांगा और बाबर के बीच 1527 में बयाना भरतपुर में हुआ था जिसमें महाराणा सांगा विजय रहा था 

5__ खानवा का युद्ध (भरतपुर) __17 मार्च 1527_
यह युद्ध खानवा नामक स्थान पर भरतपुर जिले में महाराणा सांगा और बाबर के बीच में 17 मार्च 1527 को हुआ था जिसमें  बाबर विजय रहा था


                खानवा के युद्ध का दृश्य                                 


नोट__ बाबर  मूल रूप से  मध्य एशिया फरगना का निवासी था बाबर के समकालीन भारत का शासक इब्राहिम  मोदी था

 बाबर और इब्राहिम लोदी के मध्य 31 अप्रैल 1526 में पानीपत का प्रथम युद्ध हुआ इस युद्ध में इब्राहिम लोदी पराजित हुआ और युद्ध मैदान में ही मारा गया
इब्राहिम लोदी दिल्ली सल्तनत का पहला शासक था जो युद्ध मैदान में ही लड़ता हुआ मारा गया
बाबर ने अपनी आत्मकथा  तुजुक -ए- बाबरी मैं एकमात्र राजपूत शासक के रूप में राणा सांगा का ही उल्लेख मिलता है खानवा केे युद्ध से पूर्व बाबर  बयाना (भरतपुर) के युद्ध में 1527 को सांगा से पराजित हुआ था

बाबर ने खानवा के युद्ध से पूर्व अपनी सेना को युद्ध मैदान में ऐतिहासिक भाषण दिया और इस युद्ध को धर्म युद्ध या जिहाद युद्ध घोषित किया

नोट__ बाबर ने खानवा युद्ध में तुलुकनूमा पद्धति या तोप  खाने का प्रयोग किया था यह राजस्थान में पहला तोपखाने का प्रथम प्रयोग था 

राणा सांगा भी खानवा के युद्ध में  राजपूतों का एक संघ बनाकर लड़ने आए थे यह राजस्थान के इतिहास में एकमात्र अवसर था जब सभी राजपूत एक साथ संघ बनाकर लड़ना है थे जिसमें निम्न शासक आए थे
रियासत                              शासक
चंदेरी                                 मेदिनीराय
काठियावाड़                        झाला अज्जा
आमेर                                पृथ्वीराज 
मेवात                                 हसन खा मेवाती 
ईडर (गुजरात )                    भारमल 
वागड़                                 उदय सिंह 
बीकानेर                              कुंवर कल्याणमल  
जोधपुर                               कुंवर मालदेव 
ऊपर माल                           अशोक परमार 
देवलिया                              बाघ सिंह
बंगाल                                 महमूद लोदी
                      

Note__ इस युद्ध में राणा सांगा की ओर से महमूद लोधी ने भी भाग लिया था जोकि राणा सांगा की सेना में एकमात्र मुस्लिम था

राणा सांगा के युद्ध में घायल हो जाने के बाद पृथ्वीराज (आमेर )और कुमार मालदेव (जोधपुर) ने युद्ध के मैदान से बाहर निकाला था
महाराणा सांगा के युद्ध के मैदान से बाहर जाने के पश्चात झाल्ला  आज्जा ने सांगा का  राज चिन्ह धारण किया था कहा जाता है कि सलहदी  तवर के विश्वासघात के कारण राणा सांगा की हार हुई थी
राणा सांगा युद्ध मैदान में घायल हो गए थे इसलिए इन्हें युद्ध मैदान से निकालकर बसवा (दोसा) ले जाया गया था सांगा  ने बसवा में शपथ ली थी कि जब तक वह बाबर को पराजित नहीं करेगा तब तक सिर पर पगड़ी धारण नहीं करेगा और नहीं अपनी राजधानी चित्तौड़गढ़ में प्रवेश करेगा

बसवा (दोसा) से चंदेरी (मध्य प्रदेश) जाते समय कालपी  नामक स्थान पर सांगा के सरदारों द्वारा जहर देने के कारण 30 जनवरी 1528 को कालपी में सांगा की मृत्यु हो गई
 महाराणा सांगा अंतिम संस्कार मांडलगढ़ भीलवाड़ा मैं किया गया है और यहीं पर सांगा की छतरी बनी हुई है 

सांगा के बड़े  पुत्र भोजराज का विवाह मीराबाई के साथ हुआ था


          मेवाड़ के सिसोदिया वंश  का राजवंश                                                  

1• राणा हमीर                         1326 _ 1364 

2• राणा क्षेम सिंह                   1364 _ 1382

3• राणा लाखा                         1382 _ 1421 

4• राणा मोकल                        1421_ 1433

5• राणा कुंभा                          1433 _ 1468

6• राणा उदा                            1468 _1473

7•  राणा राय सिंह                      1473 _ 1509

8• राणा सांगा /संग्राम सिंह           1509 _ 1528

9• राणा रतन सिंह                       1528 _ 1531 

10• राणा विक्रमादित्य                  1531 _ 1536

11•बनवीर                                 1536 _1537 

12•राणा उदय सिंह द्वितीय             1537 _ 1572 

13•महाराणा प्रताप                       1572 _ 1597 

14•राणा अमर सिंह                       1597 _ 1620 

15•राणा करण सिंह                       1620 _ 1628 

16•जगत सिंह                               1628 _1652 

17• राणा राज सिंह                         1652 _ 1682 

18•राणा राज सिंह                          1682 _ 1696  

19•राणा अमर सिंह द्वितीय               1696 _1710  

20• राणा संग्राम सिंह दितीय             1710 _ 1734

21• राणा जगत सिंह द्वितीय              1734 _1751  

22•राणा प्रताप सिंह दितीय               1751 _1754  

23•  राणा राज सिंह दितीय               1754 _ 1762  

24•राणा हरि सिंह वित्तीय                  1762 _ 1772  

25•राणा हमीर सिंह वित्तीय                1772 _ 1778 

26• राणा भीम सिंह                          1778 _ 1828  

27•राणा जवान सिंह                         1828 _ 1838  

28•राणा सरदार सिंह                         1838 _ 1842 

29• राणा स्वरूप सिंह                        1842 _ 1861  

30• राणा शंभू सिंह                           1861 _ 1874  

31•राणा सज्जन सिंह                        1874 _ 1884 

32• फतेह सिंह                                1884 _ 1930 

33• भूपाल सिंह                               1930 1947 


Note• राणा भूपाल सिंह इस वंश का अंतिम शासक थे



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